Thursday, July 1, 2021

कविता: आओ, जल बचाएँ।

 

जल बिन जीवन नहीं है संभव,

 जल जीवन का आधार है।

 आओ, इसका संरक्षण करें,

 इसको ना बर्बाद करें।

गर धरती पर जल न हुआ तो,

कैसे प्रकृति बच पाएगी,

हरी-भरी यह धरा हमारी,

बंजर ही बन जाएगी,

 न अन्न होगा, न फल होंगे,

सब भूखे मर जाएँगे

जल बिन जीवन नहीं है संभव।

गर धरती पर जल न हुआ तो,

सब प्यासे रह जाएँगे,

 बूँद -बूँद को तरसेंगे सब,

 कैसे फिर जी पाएँगे ?

जल बिन जीवन नहीं है संभव।

ऐसा नहीं कि धरती पर,

जल का अकाल है,

पर पीने योग्य जल की कमी,

मनुष्य की नासमझी का परिणाम है।

 कौन जल को प्रदूषित करता ?

 कौन इसे बर्बाद करता ?

न पेड़ पौधे, न जीव जंतु

 हम मानव ही जिम्मेदार हैं।

आज अगर हम न हुए सचेत तो,

बहुत देर हो जाएगी,

सोचो, आने वाली पीढ़ी,

 बिन पानी कैसे रह पाएगी?

 आओ, सब मिलकर प्रण करें,

अब न जल बर्बाद करेंगे,

पानी की एक-एक बूँद कीमती,

 इसका सदुपयोग करेंगे।

इसका सदुपयोग करेंगे।


3 comments:

  1. Nicely expressed the pathetic condition of our earth today with a strong appeal to save water.

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  2. बहुत ही बढ़िया मैडम जी।आपकी कविता समाज को जगाने का काम कर रही है।हमारी नासमझी के कारण ही आज जल की कमी है।जब तक सरकार जल संरक्षण को एक क्रांति का रूप देकर मिशन मॉड में कार्य नही करेगी,इसका संरक्षण मुश्किल होगा।सामुदायिक सहभागिता भी नितांत आवश्यक है।

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